Check bounce case: चेक बाउंस के इन मामलों में नहीं होगा केस दर्ज, हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

Check bounce case: भारत में वित्तीय लेनदेन के लिए नई तकनीकों के बावजूद आज भी बड़े पैमाने पर चेक का उपयोग किया जाता है। कई लोग इसे अब भी सुरक्षित विकल्प मानते हैं। हालांकि, चेक का उपयोग करने वालों को इसके नियमों की पूरी जानकारी न होने के कारण कई बार मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चेक बाउंस से जुड़े एक महत्वपूर्ण फैसले में कुछ मामलों में केस दर्ज न होने का निर्देश दिया है। आइए जानते हैं इस फैसले से जुड़ी अहम बातें।

चेक बाउंस पर बैंक की प्रक्रिया

अगर किसी ग्राहक का चेक बाउंस हो जाता है, तो बैंक तुरंत कानूनी कार्रवाई नहीं करता है।

पहला कदम: बैंक चेक बाउंस होने पर ग्राहक को पहले तीन महीने तक नोटिस भेजता है।
दूसरा कदम: यदि ग्राहक तीन महीने के भीतर नोटिस का जवाब नहीं देता है, तो बैंक अदालत में मुकदमा दर्ज कर सकता है।
तीसरा कदम: अदालती कार्रवाई में दोषी पाए जाने पर ग्राहक को जुर्माना या सजा का सामना करना पड़ सकता है।

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हाईकोर्ट का नया फैसला

हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चेक बाउंस से जुड़े एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है।

कोर्ट ने कहा कि जिन बैंकों का किसी अन्य बैंक में विलय (Merger) हो चुका है, उनके पुराने चेक अगर अमान्य होने के कारण बाउंस हो जाते हैं, तो ऐसे मामलों में एनआई एक्ट (NI Act) की धारा 138 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा।

न्यायमूर्ति अरुण सिंह देशवाल ने यह आदेश बांदा जिले की अर्चना सिंह गौतम की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया।

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क्या था मामला?

एक ग्राहक ने इंडियन बैंक (Indian Bank) में विलय से पहले के चेक का उपयोग किया था। बैंक ने चेक को अमान्य बताते हुए लौटा दिया। इसके बाद विपक्षी पक्ष ने ग्राहक के खिलाफ एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया।

याची ने इस मामले में हाईकोर्ट का रुख किया, जिसके बाद कोर्ट ने चेक बाउंस के इस मामले में राहत देते हुए मुकदमे को अमान्य करार दिया।

अमान्य चेक पर नहीं बनेगा केस

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर किसी बैंक के विलय के बाद उसकी चेकबुक अमान्य हो चुकी है और उसके बाद वह चेक प्रस्तुत किया जाता है, तो उसे चेक बाउंस का अपराध नहीं माना जाएगा।

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उदाहरण के लिए, इलाहाबाद बैंक का 1 अप्रैल 2020 को इंडियन बैंक में विलय हुआ था, और इसके चेक 30 सितंबर 2021 तक वैध थे।

यदि इसके बाद कोई ग्राहक पुराने चेक का उपयोग करता है और बैंक उसे अस्वीकार कर देता है, तो इसे चेक बाउंस का अपराध नहीं माना जाएगा।

एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत केस दर्ज करने के लिए चेक का वैध (Valid) होना आवश्यक है।
विलय के बाद अमान्य चेक के बाउंस होने पर मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा।

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निष्कर्ष

हाईकोर्ट का यह फैसला उन ग्राहकों के लिए राहत भरा है जो अनजाने में अमान्य चेक का उपयोग कर देते हैं। हालांकि, इस तरह की परेशानी से बचने के लिए ग्राहकों को समय पर अपनी चेकबुक अपडेट करानी चाहिए और बैंक के नए नियमों की जानकारी रखनी चाहिए।

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