Property Rights : प्रॉपर्टी विवादों में पावर ऑफ अटॉर्नी (POA) का काफी इस्तेमाल होता है, लेकिन कई बार इसे गलत तरीके से भी प्रयोग किया जाता है। इसी से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि सिर्फ पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर प्रॉपर्टी का मालिकाना हक नहीं मिल सकता। यह फैसला प्रॉपर्टी से जुड़े लोगों के लिए काफी अहम साबित हो सकता है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि POA केवल तभी अपरिवर्तनीय (Irrevocable) होता है जब वह किसी ऐसे एग्रीमेंट से जुड़ा हो, जो एजेंट (जिसे POA दिया गया है) को संपत्ति के स्वामित्व से जुड़े कुछ अधिकार देता हो। यदि POA में केवल “अपरिवर्तनीय” शब्द लिखा है, तो वह अपने आप अपरिवर्तनीय नहीं माना जाएगा। इसका मतलब यह हुआ कि किसी प्रॉपर्टी की पावर ऑफ अटॉर्नी अपने आप मालिकाना हक नहीं देती।
पूरा मामला क्या था
इस केस में संपत्ति के असली मालिक मुनियप्पा ने 4 अप्रैल 1986 को सरस्वती नाम की महिला को 10,250 रुपये में एक “अपरिवर्तनीय” GPA (General Power of Attorney) और एक अपंजीकृत बिक्री समझौता (Unregistered Sale Agreement) दिया था। इसके बाद सरस्वती को संपत्ति के प्रबंधन और बिक्री का अधिकार मिल गया।
मुनियप्पा का 30 जनवरी 1997 को निधन हो गया। इसके बाद सरस्वती ने 1 अप्रैल 1998 को अपनी संपत्ति अपने बेटे को 84,000 रुपये में बेच दी। बाद में यह संपत्ति कई बार खरीदी-बेची गई और 2004 में एक महिला ने इसे अपनी बेटी को उपहार में दे दिया।
कोर्ट तक कैसे पहुंचा मामला
2007 में एक महिला जे मंजुला ने एसएमएस अनंतमूर्ति के खिलाफ कोर्ट में केस किया। कोर्ट ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाते हुए संपत्ति पर अनंतमूर्ति का दावा खारिज कर दिया। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां अदालत ने साफ कर दिया कि POA के आधार पर स्वामित्व ट्रांसफर नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने क्यों बताया इसे अवैध
- POA में स्वामित्व अधिकार नहीं होता: मुनियप्पा की मृत्यु के बाद सरस्वती का POA खत्म हो गया। यानी, वह इस संपत्ति को किसी और को बेचने के लिए अधिकृत नहीं थीं
- संपत्ति का कानूनी ट्रांसफर जरूरी है: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ POA के जरिए प्रॉपर्टी ट्रांसफर नहीं की जा सकती। इसके लिए एक वैध सेल डीड (Sale Deed) की जरूरत होती है
- पंजीकरण (Registration) जरूरी: बिना रजिस्टर्ड सेल डीड के संपत्ति का स्वामित्व कानूनी रूप से ट्रांसफर नहीं किया जा सकता।
POA का सही उपयोग क्या है
- POA का मुख्य उद्देश्य किसी एजेंट को कुछ अधिकार देना होता है, न कि स्वामित्व ट्रांसफर करना
- POA धारक केवल मालिक की तरफ से संपत्ति बेचने का काम कर सकता है, लेकिन उसके पास खुद स्वामित्व का अधिकार नहीं होता
- यदि POA को अपरिवर्तनीय बनाना है, तो यह जरूरी है कि उसमें स्वामित्व से जुड़े कुछ अधिकार भी स्पष्ट रूप से लिखे जाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
- बिना पंजीकृत दस्तावेज के संपत्ति का मालिकाना हक ट्रांसफर नहीं हो सकता
- POA के जरिए संपत्ति बेचना कानूनी रूप से वैध नहीं है
- प्रॉपर्टी ट्रांसफर के लिए सेल डीड या गिफ्ट डीड का पंजीकरण जरूरी है
- भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 202 के तहत केवल वही POA अपरिवर्तनीय हो सकता है, जिसमें एजेंट का खुद का हित जुड़ा हो।
कोर्ट ने क्या खारिज किया
अपीलकर्ता ने दावा किया कि अपंजीकृत बिक्री समझौता उसे संपत्ति का स्वामित्व देता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जब तक सेल डीड रजिस्टर्ड नहीं होगी, तब तक कोई भी प्रॉपर्टी का असली मालिक नहीं बन सकता।
क्या सीखा जा सकता है
इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि:
- सिर्फ POA से संपत्ति का स्वामित्व नहीं मिलता
- प्रॉपर्टी खरीदते समय सेल डीड का रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है
- कोई भी प्रॉपर्टी बेचने से पहले उसके सभी दस्तावेजों की कानूनी जांच करवानी चाहिए
यह फैसला उन लोगों के लिए अहम है, जो POA के आधार पर प्रॉपर्टी खरीदने या बेचने की योजना बना रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद यह साफ हो गया है कि पावर ऑफ अटॉर्नी से किसी को प्रॉपर्टी का मालिकाना हक नहीं मिल सकता। प्रॉपर्टी खरीदते समय सही कानूनी प्रक्रिया का पालन करना बेहद जरूरी है। इसलिए, अगर आप प्रॉपर्टी डील कर रहे हैं, तो दस्तावेजों को ध्यान से पढ़ें और उनकी पूरी जांच कराएं।