Cheque Bounce Case : आजकल ज़्यादातर लोग ऑनलाइन पेमेंट का इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि यह आसान और तेज़ होता है। अगर खाते में बैलेंस नहीं है, तो ऑनलाइन ट्रांजैक्शन फेल हो जाता है और कोई कानूनी झंझट नहीं होता। लेकिन, अगर किसी को चेक दिया जाए और खाते में पर्याप्त बैलेंस न हो, तो मामला कानूनी उलझनों में फंस सकता है।
ऐसा ही एक चेक बाउंस केस पिछले 19 सालों से कोर्ट में चल रहा था, जिसमें अब हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने आरोपी को दोषी करार दिया और आदेश दिया कि उसे 6 महीने के अंदर साढ़े 6 लाख रुपये चुकाने होंगे, वरना उसे जेल की सजा भुगतनी पड़ेगी। यह मामला उन लोगों के लिए सबक है जो बिना सोचे-समझे चेक जारी कर देते हैं।
19 साल पुराना केस, अब आया फैसला
यह मामला रायपुर का है, जहां एक चेक बाउंस केस 19 साल से लंबित था। इस केस में पहले सिविल कोर्ट ने आरोपी को बेकसूर मानकर बरी कर दिया था। लेकिन पीड़ित ने हार नहीं मानी और हाईकोर्ट में अपील दायर कर दी।
अब, 19 साल बाद, हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए आरोपी को दोषी ठहरा दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि चेक बाउंस के मामले में आरोपी जिम्मेदार है और उसे साढ़े 6 लाख रुपये का मुआवजा देना होगा।
क्या है पूरा मामला
रायपुर के गुलाम मोहम्मद ने बैजनाथ पारा इलाके में स्थित अपनी तीन दुकानें बेचने का सौदा किया था। ये दुकानें कटोरा तालाब में रहने वाले युसूफ को 28 लाख रुपये में बेची गई थीं।
सौदे के तहत:
- 10 लाख रुपये एडवांस में देने की बात तय हुई थी
- बाकी बची 18 लाख की राशि 6-6 लाख की तीन किस्तों में चुकानी थी
- सौदे के अनुसार, पंजीकृत बिक्री भी कर दी गई थी
6 अगस्त 2005 को पहली किश्त के रूप में 10 लाख रुपये का भुगतान किया गया। लेकिन इसके बाद जब बाकी पैसों की बारी आई, तो मामला अटक गया।
चेक बाउंस ने बढ़ाई मुश्किलें
जब पहली किश्त के बाद 6 लाख रुपये की दूसरी किश्त का समय आया, तो युसूफ ने चेक जारी कर दिया।
- 21 सितंबर 2005 को जब चेक बैंक में लगाया गया, तो चेक अस्वीकृत हो गया और बाउंस हो गया
- युसूफ ने दूसरा चेक दिया, लेकिन वह भी बाउंस हो गया
- जब लगातार चेक बाउंस हुए, तो मामला कोर्ट तक पहुंच गया
चूंकि परक्राम्य लिखित अधिनियम 1881 की धारा 138 के तहत चेक बाउंस अपराध की श्रेणी में आता है, इसलिए पीड़ित गुलाम मोहम्मद ने आरोपी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी।
निचली अदालत ने किया था बरी, हाईकोर्ट ने बदला फैसला
यह मामला पहले मजिस्ट्रेट कोर्ट में गया।
- 24 दिसंबर 2009 को निचली अदालत ने आरोपी को बरी कर दिया
- कोर्ट ने मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्यों के आधार पर माना कि आरोपी धारा 138 के तहत दोषी नहीं है
लेकिन गुलाम मोहम्मद ने हाईकोर्ट में अपील दायर की और आखिरकार हाईकोर्ट ने निचली अदालत का फैसला पलट दिया।
हाईकोर्ट ने क्या कहा
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि:
- आरोपी युसूफ को दोषी करार दिया जाता है
- उसे 6 महीने के अंदर साढ़े 6 लाख रुपये का भुगतान करना होगा
- अगर वह पैसा नहीं चुकाता है, तो उसे कठोर कारावास की सजा दी जाएगी।
चेक बाउंस क्यों होता है
चेक बाउंस होने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे:
- खाते में पर्याप्त बैलेंस न होना
- चेक पर हस्ताक्षर मेल नहीं खाना
- चेक की डेट एक्सपायर हो जाना
- बैंक द्वारा चेक रोकने का निर्देश देना
लेकिन अगर कोई जानबूझकर बिना बैलेंस के चेक जारी करता है, तो यह कानूनी अपराध बन जाता है और इसमें जेल की सजा भी हो सकती है।
चेक बाउंस केस में सजा क्या हो सकती है
भारत में परक्राम्य लिखित अधिनियम 1881 की धारा 138 के तहत, अगर चेक बाउंस होता है, तो:
- आरोपी को 2 साल तक की सजा हो सकती है
- चेक की रकम से दोगुना जुर्माना भी लग सकता है
- कोर्ट मुआवजा देने का आदेश भी दे सकती है
सबक: चेक देने से पहले बैलेंस चेक करें
यह मामला उन लोगों के लिए सबक है जो बिना बैलेंस चेक किए बड़े-बड़े चेक जारी कर देते हैं। अगर चेक बाउंस हो जाता है, तो:
- आपको कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने पड़ सकते हैं
- सालों-साल तक केस लड़ना पड़ सकता है
- पैसे के अलावा जेल भी हो सकती है
इसलिए, अगर आप किसी को चेक देते हैं, तो पहले सुनिश्चित कर लें कि आपके खाते में पर्याप्त बैलेंस है। वरना, यह आपके लिए बड़ी मुसीबत बन सकता है